पृष्ठ:दो सौ बावन वैष्णवन की वार्ता.djvu/७३

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$8 दोसौ बावन वैष्णवन की वार्ता जो-रेंडा ! अव निर्वाह कैसे होत है ? तव रेंडा ने कही, जो-राज ! श्रीठाकुरजी तो डोकरी के भेले विराजत हैं। और मैं गाम में ते चुकटी माँगि ल्यावत हूं । ताते भलीभांति निर्वाह होत है । तव श्रीगुसांईजी आप पूछे, जो- चुकटी कौन कौन के घर ते ल्यावत हो ? तव रेंडा ने कही, जो- तुम्हारी ज्ञाति के भट्ट हैं तथा सेवक लोग हैं और ब्रजवासीन के घरन तें ल्यावत हों । तव श्रीगुसांईजी ने कह्यो, जो-आज पाछे भट्ट और सेवक तथा जहां हमारी सत्ता कौ द्रव्य होइ तहां तें चुकटी मति लीजियो। गाम में ब्रजवासी हैं, और हैं, तहां तें लीजियो। तव यह सुनि के रेंडा ने विनती करी, जो- महाराज! आज पार्छ ऐसे ही करूंगो। ता पाछे रेंडा भट्ट और सेवक भीतरियान के घर तें चुकटी न लेतो । सो रेंडा के ऊपर श्रीगुसांईजी वोहोत प्रसन्न रहते। वार्ता प्रमंग-२ बोहोरि एक दिन अर्द्ध रात्रि के समै श्रीगुसांईजी बोहोत प्रसन्नता में बैठे हते। सो ता समै रेंडा सों पूछ्यो, जो - तेरो मन श्रीगोकुल में लगत है ? तव रेंडा ने विनती करी, जो- महाराज ! मेरे तो सर्वस्व धन आप हो । और नित्य लीला यहां होत है । सो आपकी कृपा तें मन बोहोत लग्यो है। परंतु कछु अनुभव नाही भयो । सो आप कृपा करोगे तब होइगो। तब आप आज्ञा किये, जो - काल्हि तू मंगलाति के दरसन करि अकेलो 'रमनरेती' जैयो। तहां कछु होइगो। तब यह सुनि कै रेंडा बोहोत प्रसन्न भयो । सो रात्रिकों ऐसी आर्ति मन में भई, जो - नीद न परी । पाठे प्रातःकाल उठि