पृष्ठ:द्विवेदीयुग के साहित्यकारों के कुछ पत्र.djvu/१०४

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पं० पसिंह शर्मा जी के पत्र द्विवेदी जी के नाम 'पास्टमास्टर' के स्थान में 'पाष्टमास्टर' और 'गवर्नमेन्ट' की जगह 'गवर्णमेण्ट आदि लिख देते हैं, जो सर्वथा अशुद्ध होता है। निबन्ध में जहाँ कथित भाषा के लिए व्याकरण की अनावश्यकता दिखलाई है वहाँ यदि श्री हर्ष के इस श्लोक का सन्निवेश हो जाय तो अच्छा हो- ___ "भक्तुं प्रभुर्व्याकरणस्य दर्प पदप्रयोगाध्वनि लोक एषः। शशोयदस्यास्ति "शशी" ततो यमेवं मृगो स्यास्ति 'मुगी' तिनोक्तम् ! ॥" लेख बहुत ही उपयोगी और हृदयग्राही है, अवश्य छपाइए। इस प्रकार के लेख ही हिन्दी को उन्नत करेंगे। मत्सरी लोगों की बात पर ध्यान न दिया कीजिए। जो बात साहित्य का और लोगों का उपकार करे उसे प्रकाशित करने में किसी के आक्षेपों की परवाह न किया कीजिए। हाली ने कहा है- "क्या पूछते हो क्यों कर सब नुक्ताची हुवे चुप। - सब कुछ कहा उन्होंने, पर हमने दम् न मारा॥" हिन्दी भाषा के सच्चे शुभचिन्तकों को और स्वयं हिन्दी साहित्य को आपसे बड़ी बड़ी आशायें हैं। परमात्मा करे कि वे पूरी हों। आप सदा इसी प्रकार उसे उन्नत करते रहें। सरस्वती में 'रघुवंश तिलक' वाले कविमन्य की जो खबर आपने ली है, उसे पढ़कर बड़ा ही हर्ष हुआ। ऐसी ऐसी अनधिकार चेष्टा करने वालों की 'गोशमाली' जरूर करते रहा कीजिए। . पण्डित जी! अविवेकी लोक की गुणपरांमुखता को क्या कहें! यदि आप कृपाकर के हमें 'शिक्षा सरोज' और रीडर्स न दिखलाते तो हम उनके विषय में नितान्त अनभिज्ञ ही बने रहते। कितने पश्चाताप और खेद का विषय है कि ऐसी अमूल्य पुस्तकों के प्रचार की कौन कहै नाम तक से लोक अपरिचित है। हा हतसिगुणज्ञते। सचमुच आपने जिस विषय पर लेखनी उठा दी है, उस विषय पर फिर किसी दूसरे लेखक को लिखने की आवश्यकता नहीं रही। मेरे चित्त में कई बार यह बात आई कि हिन्दी सीखने वालों बालकों के लिए कुछ पुस्तकें तैयार करने को आपको लिखू। परन्तु अब मालूम हुआ कि आप इस काम को पहले ही कर चुके हैं। इससे बड़ा ही हर्ष हुआ। ला० बदरीदास अब काश्मीर से लौट आए हैं। शायद अब आपके पत्र का उत्तर दें। कदाचित् आपकी चिट्ठी से ही प्रेरित होकर ला० बदरीदास ने ला० मुन्शीराम को लिखा है कि आप कन्या म० वि० के लिए कुछ पाठ्य पुस्तकें तजवीज कीजिए। ला० मुन्शीराम आजकल बाहर गए हुए हैं। शायद उस विषय में वे मुझ से भी कुछ पूछे। इसलिए उन्हें दिखलाने के अर्थ शिक्षा सरोज और रीडर्स रख ली हैं। शिक्षा सरोज और रीडर्स क्या इंडियन प्रेस से मिलती हैं ? शायद उनके मंगाने