पृष्ठ:द्विवेदीयुग के साहित्यकारों के कुछ पत्र.djvu/११०

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पं० पद्मसिंह शर्मा जी के पत्र द्विवेदी जी के नाम उत्तम और सस्ती मिलती हैं। इसलिए वहाँ से मंगाने की कोशिश की गई थी, खैर। अक्टूबर की सरस्वती में ला० देवराज वाला नोट पढ़ा। 'जमाने' की खबर अच्छी ली है। . हाँ, उस ला० नारायणदास वाली 'शिक्षामणि' की समालोचना भी आगामी संख्या में (यदि हो सके) तो निकाल दीजिए। लाला साहब उत्सुक हैं। आपका कृपाकांक्षी पसिंह (१३) ओम् जालन्धर शहर ६-११-०५. श्रीमत्सु प्रणति कदम्बाः दयादल मिला। अनुगृहीत किया। '. अनुवाद के विषय में सब कुछ ठाकुर साहब से सुना दिया। वे जो कुछ उत्तर देंगे, कल परसों, मैं लिख भेजूंगा। क्षमा प्रार्थना पुरःसर निवेदन है कि सुतरी रंग की पट्टियां यहां नहीं मिलतीं। रावलपिण्डी से कुछ उत्तर नहीं मिला। लाहौर में एक महाशय को लिखा था। उन्होंने सुतरी रंग का मलीदा भेज दिया। सो कल वापस करके उनसे पूछा है कि "क्या इस रंग की पट्टी वहाँ नहीं मिलती? यदि मिलती हो तो पट्टी भेज दो मलीदा नहीं चाहिए।” सो कल आज में वहाँ से पट्टी या उत्तर आनेवाला है। यदि पट्टी आ गई तो खैर, वरना मैं फिर स्वयं अमृतसर या लाहौर जाऊंगा। आप कृपया लौटती डाक से उत्तर दीजिए कि यदि सुतरी बादामी रंग की पट्टी न मिल तो अपनी पसंद से किसी अन्य रंग की अच्छी पट्टी भेज दूं? या क्या करूँ?: . • और उस रंग की टोपी भी यदि न मिले तो किसी और रंग की भेज दूं? यहाँ एक दूकानदार के यहाँ बादामी रंग की एक पट्टी है, पर वह पतली है, दबीज नहीं, और वह पट्टी 'धारीवाल' पंजाब की बनी हुई है। (खालिस है) पर काश्मीर या काबुल की नहीं। उसका सूट कोई ७॥) रु० में बैठता है।