पृष्ठ:द्विवेदीयुग के साहित्यकारों के कुछ पत्र.djvu/१७५

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१६१ पं० पद्मसिंह शर्मा जी के पत्र द्विवेदी जी के नाम (६४) ओम् अजमेर २०-१०-०८ श्रीयुत मान्यवर पंडित जी प्रणाम कृपापत्र और कृपाकार्ड यथासमय मिले। नोटिश का हाल आपके पत्र आने से पूर्व ही पं० बाबूराम शर्मा संपादक आर्यमित्र के पत्र द्वारा विदित हो गया था। इसलिए खेद है कि यह बात गुप्त न रह सकी, जैसाकि आपकी आज्ञा थी, अस्तु। मथुरा से अभी हिस्ट्री नहीं आई, न बी० एन० की किताबें ही आई, दो तीन पत्र भी लिख चुके, फिर लिखता हूं। ____ हां, आगरे से पं० बाबूराम शर्मा की भाषा रामायण और १६ जून का आ० मित्र कल आया है, जो आज की डाक से भेजता हं,८ सितंबर के आर्यमित्र की कटिंग आप अपने पास ही रहने दीजिए। भेजने की जरूरत नहीं। फाल्गुन का परोपकारी भेज चुका हूं। शिक्षामंजरी की समालोचना में आपका नाम लिख देने से ही बी० एन० आप से नहीं चिढ़ा, किंतु उसका स्वभाव ही बड़े आदमियों पर हमला करके अपना बड़प्पन जतलाना है। वह पहले भी तो आपके विरुद्ध लिखता रहा है। कृपया बी० एन० के माफीनामे की एक अविकल नकल हमें भी भेजिए, हम उसकी गिड़गिड़ाहट देखना चाहते हैं। आप कहेंगे तो हम उसे गुप्त रखेंगे, किसी को सुनाएंगे नहीं। भेजिए जरूर। पं० रामचंद्र शर्मा का वह लेख आर्यमित्र ने नहीं छापा, छापे भी कैसे, उससे तो आपके दावे की पुष्टि होती है न? कल जो “आ० मित्र" आया है, उसमें लिखा है "अजमेर प्रवासी शर्मा जी! आपका लेख कई अंशों में सत्य होने पर भी हम कारणवशात् इस समय उसके छापने में असमर्थ हैं" इत्यादि। पं० रामचंद्र शर्मा ने आर्यमित्र को एक पत्र भी लिखा है कि लेख छापिए या वापिस कीजिए। वहां वह लेख छपेगा नहीं, यह निश्चित है। ८ अक्टूबर के बाद फिर आपके बारे में आर्यमित्र में कुछ नहीं लिखा गया । जब कुछ लिखा जायगा भेज दंगा, मेरी सम्मति में माफी तो सब अभियुक्त मांग लेंगे पर रुपये कहां से देंगे? माफी मांगने पर क्या रुपयों के लिये दावा करना ही होगा। 'परोपकारी' का अध्यक्ष परोपकारिणी सभा है। शाहपुराधीश ने परोपकारी के संबंध में ही बुलाया था। मैनेजर प्रेस ने ११