सामग्री पर जाएँ

पृष्ठ:द्विवेदीयुग के साहित्यकारों के कुछ पत्र.djvu/८८

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

द्विवेदी जी के पत्र पं० बनारसीदास चतुर्वेदी के नाम ७३ पर नहीं लिख सका। इससे आप जान जायंगे कि आपकी तरह और लोग भी मुझ से वैसा काम कराना चाहते हैं। ___हिंदी लेखकों की दशा अच्छी नहीं। प्रकाशक उनसे भी बदतर हैं। रद्दी कहा- नियां ये लोग दौड़ दौड़ छापते हैं। मेरे फुटकर लेखों की कोई ३२ पुस्तकें हुई। बाबू शिवप्रसाद जी गुप्त ने सबकी नकल करा दी। उनमें से कोई १० पुस्तकें पड़ी हुई हैं। कोई पूछता ही नहीं । ऐसे लोगों के लिए आत्मचरित लिखकर बेचने की इच्छा नहीं होती। हों भी तो लिखने की शक्ति नहीं। . ___आपने अपनी चिट्ठी में कुछ खानगी बातें लिखी हैं। इससे आपका निष्कपट' भाव और हृदय-सारल्य प्रकट होता है । अतएव में भी आपका अनुसरण करने को तैयार हूँ, क्योंकि सज्जनों के साथ साथ बातें हो जाने से भी वे मैत्रीसूत्र में बद्ध-से हो जाते हैं। “यतः सतां हे बुधवर्य संगतं मनीषिमिः साप्तपदीनमुच्यते।" लोको- क्ति-कोष वाले खत्री जी (शायद दामोदरदास) को यह चिट्ठी दिखाइए और उनसे कहिए कि मैं उनसे, मुर्शिदाबादवाले नवाबी जगत्सेठों से तथा कारनेगी और राक- फेलर से भी अधिक अमीर हूँ। अमीर किसे कहते हैं, यह शायद वे नहीं जानते। शंकराचार्य जानते थे। उनका कहना है कि जो जितना अधिक संतोषशील है, वह उतना ही अधिक अमीर है। और जो जितना ही तृष्णालु है, वह उतना ही दरिद्र। मैं तो दुनियाभर के अमीरों को लक्षाधीशों ही को नहीं, कोट्याधीशों को भी अपने सामने तृणवत् समझता हूँ। क्योंकि, "निस्पृहस्य तृणं जगत्" इसे वे अपने कोष के दूसरे संस्करण में रख सकते हैं । ये लोग दूसरों के माल मत्ते की नाप-तौल अपने मानदंड से तो करते हैं, पर यह नहीं कभी सोचते कि इनसे पूछे किसी चीज की इन्हें कमी तो नहीं, और हो तो उसे दूर करने की कोशिश करें। १७ वर्ष की उम्र में मैंने रेलवे में मुलाजिमत शुरू की। सिर्फ १५०)+परस- नल अलौएन्स ५०%3D२००) मिलते थे। १८ वर्ष तक सरस्वती का काम किया। छोड़ने के वक्त सिर्फ १५०) मिलते थे। तब से सिर्फ ५०) मासिक पेंशन। कभी एक पैसा भी किसी से हराम का नहीं लिया। मेरी रहन-सहन, घर द्वार सब आपका देखा हुआ है। कानपुर का कुटीर भी आप देख चुके है । इस तरह रहकर जो कुछ बचाया वह सब प्रायः खैरात कर दिया । यथा- ____ कई लड़कों को अपने खर्च से पढ़ा दिया। उनमें से कुछ एम० ए०, बी० ए. . भी हैं। रिश्ते में अपनी तीन भानजियों की शादियां और गौने किए। औरों की भी दो लड़कियां व्याहीं। गांव में कई गरीब घरों की लड़कियों की शादियों में मदद दी। कई विधावाओं का पालन किया। दो एक अब भी वृत्तियां पाती हैं। पिता की इच्छाएं पूर्ण की, गया-श्राद्ध, ब्राह्मण-भोजन, दान-पुण्य, मकान और कूप आदि