पृष्ठ:धर्म के नाम पर.djvu/१२३

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वर्ष की लड़की से विवाह करने की ठानी। सुना गया कि लड़की बीकानेर राज्य भर में एक मात्र सुन्दरी बालिका है। कन्या को मृत्यु शैया पर हमने देखा था, उसमें तनिक भी अत्युक्ति न थी। कन्या की सगाई उसके पिता ने एक अन्य दुहेजुआ आदमी से साढ़े चार हज़ार रुपया लेकर करदी थी। परन्तु सेठ ने उसके ग्यारह हजार दाम लगा दिये। इस लिये सगाई सेठ को चढ़ा दी गई। इस पर वह व्यक्ति जिसे सगाई चढ़ गई थी, आया और पंचों से फ़रियाद करता फिरा परन्तु कोई भी पंच सेठ के विरुद्ध न कर सकता था। वह व्यक्ति हमारे पास आया और हमने उसे नुसख़ा बता दिया। हमने उसे सलाह दी कि अमुक मन्दिर में अन्न जल त्याग धरना देकर बैठ जाओ। ५०) पुजारी को चुका दो और कहदो जब तक मैं अन्न जल न करूं ठाकुर जी को भोग न लगाया जाय। यही किया गया और दोपहर तक नगर भर में अफवाह फैलगई कि आज ठाकुर जी के पट बन्द हैं दर्शन नहीं होते न भोग लगता है, उसका कारण यह कि एक फरियादी ने वहाँ धरना दिया है। ग़रज भीड़ की भीड़ आने लगी और पंचायत जुड़ी—फैसला यह हुआ कि उसके रुपये वापस दे दिए जायँ। सेठ ने पंचों को ग्यारह हजार की लागत की एक बगी़ची मय अहाते के पंचायत के नाम देकर यह फैसला खरीदा था। विवश वह रुपया ले घर में बैठ रहा। तब नगर के युवकों ने लड़की के मामा को बुलाकर उसे आगे कर दावा दायर किया। वह महायुद्ध के दिन थे। सेठ ने एक लाख के वार बौण्ड ख़रीद कर