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पृष्ठ:धर्म के नाम पर.djvu/१६५

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हम ने पीछे किसी अध्याय में कणाद मुनि के वैशेषिक सूत्र "यतो अभ्युदय निःश्रेयस सिद्धिः स धर्मः" इस पर प्रकाश डाला है। इस वाक्य के साथ वहाँ जो और पंक्तियाँ लिखी हैं उन पर प्रत्येक पाठक को भली भाँति मनन करना चाहिये।

उस से अधिक मैं यह कहना चाहता हूँ कि सब से उत्तम धर्म वही है जिस में नीति की मर्यादा का अधिकाधिक पालन किया गया हो। यद्यपि आज संसार भर के मनुष्य नीति से धर्म को पृथक् किया चाहते हैं। परन्तु मेरी राय में यह असम्भव है।

नीति का निर्माण रीतियों पर चला है। सृष्टि के आदि से आज तक लोग अच्छी रीतियाँ चलाते और बुरी छोड़ते रहे हैं। बहुधा ऐसा होता है कि लोक लाज या दबाव से बहुत मनुष्य कुछ बुरे काम नहीं करते और कुछ अच्छे कर गुज़रते हैं। यद्यपि बुरे कामों के लिये उनके मन में इच्छा और भले कामों के लिये अनिच्छा रहती है। परन्तु कुछ ऐसे भी मनुष्य होते हैं जो मरने जीने या हानि लाभ की तनिक भी परवा बिना किये, नीति मार्ग पर चले ही जाते हैं। इन दोनों प्रकार के मनुष्यों में अन्तर तो होता ही है। और वह अन्तर यही है कि अन्तरात्मा से काम करने वाले लोगों की नीति ही धर्म नीति है। यदि नीति और धर्म का समावेश न किया जायगा तो नीति कभी भी अच्छे मार्ग पर न चल कर कुराह पर ही चलेगी। वास्तव में बीज धर्म है और नीति का जल सिंचन करने से ही उस में शुभ अंकुर लगता है। केवल नीति के परिणाम स्वरूप ही हम अच्छे विचारों का निर्णय