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पछ्तावा

दुकान से पूरियों की पत्तल लिये चला आता था। उधर बेचारे किसान पेड़ के नीचे चुपचाप उदास बैठे थे कि बाज न जाने क्या होगा, कौन आफ़त आयेगी! भगवान का भरोसा है। मुकदमें की पेशी हुई। कुँवर साहब की ओर के गवाह गवाही देने लगे कि असामी बड़े सरकश हैं। जब लगान माँगा जाता है तो लड़ाई-झगड़े पर तैयार हो जाते हैं। अबकी इन्होंने एक कौड़ी भी नहीं दी।

कादिर ख़ाँ ने रोकर अपने सिर की चोट दिखाई। सबके पीछे पण्डित दुर्गा-नाथ की पुकार हुई। उन्हीं के बयान पर निपटारा होना था। वकील साहब ने उन्हें खूब तोते की भाँति पढ़ा रखा था,किन्तु उनके मुख से पहला वाक्य निकला ही था कि मैजिस्ट्रेट ने उनकी ओर तीव्र दृष्टि से देखा। वकील साहब बगलें झाँकने लगे। मुख्तार-आम ने उनकी ओर घूरकर देखा। अहलमद पेश-कार आदि सब-के सब उनकी ओर आश्चर्य की दृष्टि से देखने लगे।

न्यायाधीश ने तीव्र स्वर में कहा-तुम जानते हो कि मैजिस्ट्रेट के सामने खड़े हो ?

दुर्गानाथ (दृढ़तापूर्वक)-जी हाँ, भली भाँति जानता हूँ।

न्याया०-तुम्हारे ऊपर असत्य भाषण का अभियोग लगाया जा सकता है।

दुर्गानाथ-अवश्य, यदि मेरा कथन झूठा हो।

वकील ने कहा-जान पड़ता है, किसानों के दूध, घी और भेंट प्रादि ने यह काया-पलट कर दी है और न्यायाधीश की ओर सार्थक दृष्टि से देखा।

दुर्गानाथ-आपको इन वस्तुओं का अधिक तजुर्बा होगा। मुझे तो अपनी रूखी रोटियाँ ही अधिक प्यारी है।

न्यायाधीश-तो इन असामियों ने सब रुपया बेवाक कर दिया है ?

दुर्गानाथ-जी हाँ, इनके जिम्मे लगान की एक कौड़ी भी बाकी नहीं है।

न्यायाधीश-रसीदें क्यों नहीं दी ?

दुर्गानाथ-मेरे मालिक की आज्ञा।

मैजिस्ट्रेट ने नालिशें डिसमिस कर दी। कुँवर साहब को ज्यों ही इस पराजय की खबर मिली, उनके कोप की मात्रा सीमा से बाहर हो गई। उन्होंने पण्डित दुर्गानाथ को सैकड़ों कुवाक्य कहे-नमकहराम, विश्वासघाती, दुष्ट।