राजकुमार ने तनकर उत्तर दिया-लज्जाहीन स्त्रियों की यही सज़ा है।
राणा ने कहा-तुम्हाग वैरी तो मैं था। मेरे सामने आते क्यों लजाते थे?bज़रा मैं भी तुम्हारी तलवार की काट देखता।
राजकुमार ने ऐठकर राणा पर तलवार चलाई। शस्त्र-विद्या में राणा अति कुशल थे। वार ख़ाली देकर राजकुमार पर झपटे। इतने में प्रजा जो मूर्छित अवस्था में दीवार से चिमटी खड़ी थी, बिजली की तरह कौंधकर राजकुमार के सामने खड़ी हो गई। राणा वार कर चुके थे। तलवार का पूरा हाथ उसके कंधे पर पड़ा। रक्त की फुहार छूटने लगी। राणा ने एक ठण्डी साँस ली और उन्होंने तलवार हाथ से फेंककर गिरती हुई प्रभा को सँभाल लिया।
क्षणमात्र में प्रभा का मुखमण्डल वर्ण-हीन हो गया।आँखें बुझ गई। दीपक ठण्डा हो गया। मन्दार-कुमार ने भी तलवार फेंक दी और वह आँखों में आँसू भर प्रभा के सामने घुटने टेककर बैठ गया। दोनों प्रेमियों की आँखें सजलयी। पतिंगे बुझे हुए दीपक पर जान दे रहे थे।
प्रेम के रहस्य निगले हैं। अभी एक क्षण हुए राजकुमार प्रभा पर तलवार लेकर झपटा था। प्रभा किसी प्रकार उसके साथ चलने पर उद्यत न होती यो। लज्जा का भय, धर्म की बेड़ी, कर्तव्य की दीवार,रास्ता रोके खड़ी थी। परन्तु उसे तलवार के सामने देखकर उसने उसपर अपना प्राण अर्पण कर दिया। प्रीति की प्रथा निबाह दी। लेकिन अपने वचन के अनुसार उसी घर में।
हाँ,प्रेम के रहस्य निराले हैं। अभी एक क्षण पहले राजकुमार प्रभा पर तलवार लेकर झपटा था। उसके खून का प्यासा था। ईर्ष्या की अग्नि उसके हृदय में दहक रही थी। वह रधिर की धारा से शान्त हो गई। कुछ देर तक वह अचेत बैठा रोता रहा। फिर उठा और उसने तलवार उठाकर ज़ोर से अपनी छाती में चुभा ली। फिर रक्त की फुहार निकली। दोनों धाराएँ मिल गईं और उनमें कोई भेद न रहा।
प्रभा उसके साथ चलने पर राज़ी न थी। किन्तु वह प्रेम के बन्धन को तोड़ न सकी। दोनों उस घर ही से नहीं, संसार से एक साथ सिधारे।