पृष्ठ:नाट्यसंभव.djvu/१०

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नाट्यसम्भव।


और देश तथा समाज की दुर्गति देखकर भी नहीं देखते। यह सब मूर्खता के लक्षण नहीं तो क्या हैं? (ठहर कर) अरे हम फिर वही पुराना पीटना पीटने लगे और! यह तो भूलही गए कि आज हम कौनसा रूपक खेलने के लिए आए हैं? अच्छा! पारिपार्श्वक को बुलाकर पूछै। (घूमकर और नेपथ्य की ओर देखकर) अरे भावक!!!

(नेपथ्य में)


आर्य्य। हम आए।


पारिपार्श्वक। (आकर) कहो क्या विचार है?


सूत्रधार। परम माननीय संगीत और साहित्य विशारद सूर्यपुराधिपति श्रील श्रीयुक्त श्री राजा राजराजेश्वरी प्रसादसिंह साहब बहादुर ने आज हमें नाटक खेलने की आज्ञा दी है।


पारिपार्श्वक। यह तो हम भी जानते हैं।


सूत्रधार। तो फिर कौनसा रूपक दिखलावें?


पारिपार्श्वक वाह ! ऐसी जल्दी भूल गए? सुनो श्रीमान् राजा साहब ने "नाट्यसम्भव" रूपक खेलने के लिए अनुमति दी है, कि जिसको देखकर लोग इस विद्या के महत्व को अच्छी तरह समझैं और इसकी ओर झुककर अपने देश तथा समाज की उन्नति करैं।


सूत्रधार! तुमने ठीक कहा। अहाहा श्रीमान् राजा साहब