पृष्ठ:नाट्यसंभव.djvu/१२

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नाट्यसम्भव।

श्रीहरिः।

नाट्यसम्भव।

रूपक।

विष्कम्भक।

(रंगभूमि का परदा उठता है)

स्थान नन्दनवन।


(आकाश मार्ग में प्रकाश होता है और वीणा लिए गाती हुई दो अप्सरा आती हैं)


पहिली अप्सरा। (राग जोगिया)

जयजय रुकमिनि रमा सिवानी।
दमयन्ती सावित्री सीता सकुंतला सुररानी॥

जगजननी अघहरनि करनिमहिमङ्गल सब सुखदानी॥
जासु नाम गावत कुलबाला भुवनविदित गुनखानी॥


दूसरी अप्सरा। (राग गौरी)

जयजय सची स्वर्ग की रानी।

सती सिरोमनि पतिअनुरागिनि तीनहुं लोक बखानी
जासु मेरुसों अचल पतिब्रत गावत सुनि विज्ञानी।
सतीमंडली माहिं दिवानिसि जो सादर सनमानी॥