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नाट्यसम्भव।

भोजन कर लेना चाहिये। सो आज देर जो हुई।

भरत। तो क्या चिंता है रे!

दमनक। (मन में) हम मरें तो बखेड़ा मिटै। (प्रगट) पूजापाठ होम करते २ संझा हो जायगी तो आन निर्जला एकादशी करनी पड़ेगी? देखिये दोपर ढलने में अब देर क्या है?

भरत। (हंस कर) अच्छा तू हमारी फिकर मत कर। यह ले (फल देते हैं) नन्दनवन से तेरे लिये यह फल लाये हैं।

दमनक। (मन में) ऊंट के मुंह में जीरा (प्रगट) ऐ गुरूजी इतने में क्या पेट भर जायगा?

भरत। (हंस कर) पेट न ठहरा भरसाईं ठहरी। पहिले खा तो सही, फिर पूछियो। आठ दिन तक भूख प्यास का नाम भी न लेगा।

दमनक। ऐं! ऐं। ऐसा? (फल साता है)

भरत। (हंस कर) वाह! तैनें तो लग्गा लगाही दिया। (मन में) हमने इस सूदे बालक पर बहुतही श्रम का भार डाल दिया है कि जिसमें शरीर नीरोग रहे। पर अभी यह अज्ञान और चंचल है, इससे कमी २ घबरा जाता है। कहीं ऐसा न हो कि उकता कर भाग जाय। क्योंकि इन होनहार लड़के पर हमारी बड़ी ममता है। अच्छा एक दिन इसे भी स्वर्ग की