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पृष्ठ:नाट्यसंभव.djvu/९५

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नाट्यसम्भव।


वृहस्पति। निश्चय है कि इस विषम समस्या को अभी भरत या नारद यहां आकर सुलझा देंगे।

(नेपथ्य में बीन की झनकार)

इन्द्र। लीजिए, नाम लेतेही देवर्षि नारदजी आपहुंचे, यह उन्हीं की बीन बजती है।

सब देवता। ठीक है, टीक है।

(नेपथ्य में गीत)
(मेघ देवता कान लगाकर सुनते हैं और इन्द्र आश्चर्य्य नाट्य करता है)
राग विरहिनी।

प्रीतम से कोड जाय कहै रे।
बिन दग्व नहिं परत चैन, मम नैनन नीर बहेरे।।
तरफरात जिय छिन छिन आली,केहि विधि चैन लहर।
पड़ी विकल मंझधार विरदिनी का अब बांह गहरे॥

इन्द्र । अरे! यह तो स्पष्ट इन्द्राणी का वोट है ? तो क्या से भी मिथ्या मान लें: हा, दुर्दैव! (नेपथ्य में पुन: गान) रागहम्मीर।

पिय विन सजनी धड़के छतियां।
नहिं अलहुंभाष उर लाय लिया,
का विसरि गए हमरी बतियां।