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पृष्ठ:नारी समस्या.djvu/११२

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नारी समस्या एक बात पर आप का ध्यान आकर्षित कर देना चाहती हूँ । हमारे भाई-बहिन तथा बच्चे इतने निस्तेज, डरपोक, अस्वस्थ, नीरस और कलाहीन क्यों दिखाई देते हैं ? लगभग २०-२५ वर्षों से समाज में सुधार की आवाज उठ रही है । अनेकां सभाएँ होती हैं, विचार विनिमय होते हैं, प्रस्ताव पास होते हैं लेकिन अभी तक कुछ इने गिने सुधारकों के अतिरिक्त सुधारों को किसी ने नहीं अपनाया और जब तक सर्वसाधारण जनता सुधारों को नहीं अपनाती तब तक केवल पाँच-पचास बड़े घरानों का सुधार अर्थ ही क्या रखता है ? मुझे तो ऐसा जान पड़ता है कि विद्यारूपी प्रकाश के बिनां हमारा यह अन्धकार का परदा हट नहीं सकता । सामाजिक रूढ़ियों को हटाने के लिये शिक्षा की अत्यन्त आवश्यकता है । हमारे समाज में स्त्रीशिक्षा के सम्बन्ध में बहुत मतभेद है । कुछ लोग लड़कियों को केवल अक्षर ज्ञान हो जाना और चिठी-पत्री योग्य टूटे फूटे शब्दों का लिखना आ जाने का ही पर्याप्त समझते हैं । ऐसे भाइयों के लिये अवश्य ही मैं कहूँगी कि उन्हें विद्या के महत्व का ज्ञान नहीं है । यदि मेरे भाई विद्या का पैसे कमाने का साधन समझते हैं तो यह उनकी भूल है। विद्या तो गृहकार्यों में, उठने बैठने में, खाने पीने और कपड़े पहिनने तक में काम आती है आज समाज की स्त्रियों में जो फूहड़पन दिखाई देता है वह अविद्या का ही कारण है । विद्या हृदय का प्रकाश है और दिमाग की भूख है । इसके लिये पक्षपात करना स्त्रियों के साथ अन्याय है । यह अन्याय. बहुत समय से होता आ रहा है । और इसीका कड़वा फल हमारा समाज चख रहा है। सुधारकों तथा कार्यकर्ताओं का कर्तव्य है कि समाज के हर एक स्त्री-पुरुष का ढूंढ ढूँढकर अक्षर ज्ञान करा दें। हर एक लड़की या लड़के की शादी तभी होनी चाहिये जब उसका कम से कम जीवन के आवश्यक विषयों का शिक्षण हो जाय। प्राचीन काल में पच्चीस वर्ष तक ब्रह्मचर्य पालन करते हुए अध्ययन करना पड़ता था लेकिन आज तो अध्ययन के नाम से हम परहेज़ सा करते हैं । हमारा पैसा किस काम का यदि हम अपने समाज को ही सुन्दर और सुडौल नहीं बना सके ? हमारा समाज मंदिर बनवा देना, कुआ बावड़ी खुदा देना, धर्मशाला बनवा देना, ब्राह्मण जिमाना, संक्रान्ति, सोमवती और मितिपात आदि पर्वो पर दान करना तो खूब जानता है पर समाज के शिक्षण, कला-कौशल, उद्योग-धन्धों और साहित्य-साधना की ओर उसका ध्यान नहीं है । दान-धर्म को मैं बुरा नहीं समझती ब्राह्मणों को बेमतलब का दान देकर उन्हें निरुद्योगी और आलसी बनाने के पक्ष में मैं नहीं हूँ। दान करना हो तो