हैं क्योंकि हमारी अवनति के साथ देश और समाज की अवनति भी जुड़ी हुई है।
एक दिन मैं अपने एक सम्बन्धी को लेने स्टेशन गई थी। तीसरे दर्जे के प्लेटफार्म पर कुछ बेंच पड़ी हुई थीं। मैंने देखा बेंच पर एक मारवाड़ी सज्जन बैठे हुए थे। थोड़ी दूर फर्श पर उनकी सहधर्मिणी कहलानेवाली स्त्री हाथों में बड़े-बड़े सोने के बंद और पैरों में मूसलाकार कड़ी पहने बैठी थीं। मैं भी पास की एक बेंच पर बैठ गई और उनसे भी बेंच पर बैठने के लिये आग्रह करने लगी। तब उनके पति ने मुझ से कहा कि वह नहीं बैठेंगी। हम लोगों में रिवाज़ ही ऐसा है। मैंने उस स्त्री को समझाने की कोशिश की कि आप सार्वजनिक स्थानों में तो जूतियों के पास न बैठा कीजिये। इससे आप की ही इज्ज़त कम नहीं होती आप के संरक्षक पुरुषों की और समाज की भी इज्ज़त हलकी होती है। मैं यह कह ही रही थी कि उनके पति महाशय उठकर कुछ दूर वृक्ष के नीचे चले गये। शायद मुझे मारवाड़ी जानकर उन्हें वहाँ बैठना भार हो गया। मैंने महिला से कहा कि अब तो आप बैठ जाइये किन्तु वह पुरुषों के सामने भला इतनी ढिठाई कैसे करती! दो मिनिट बाद एक लड़का आया और उक्त महिला को उसी वृक्ष के नीचे बुला ले गया। मेरी इच्छा थी कि उन महाशय को समझाकर उनसे स्त्री को ठीक स्थान पर बैठने के लिये आग्रह कराऊँ किन्तु उन महाशय को तो मेरी छाया मात्र से भय था। लोग कहेंगे इसमें उस स्त्री का ही दोष है किन्तु सोचना चाहिये कि सदियों की गुलाम जातियों में इतनी हिम्मत कहाँ? स्त्रियाँ अपना स्थान लेंगी तो अवश्य किन्तु पुरुषों की सहायता बिना देरी से और कठिनाई से। बहुत से सुधारक लोग घर में आतंक रखने पर भी सार्वजनिक स्थान में स्त्रियों की इज्ज़त करना लज्जाजनक नहीं समझते।
स्त्री और पुरुष समाज के दायें और बाएँ अंग हैं। एक दूसरे का सहायक है। एक के बिना दूसरा अपूर्ण रहता है। एक अंश के अशक्त होने पर क्या दूसरा अंग उन्नति कर सकता है? इसीलिये मैं बार-बार कहा करती हूँ कि पुरुष स्त्रियों को पाँव की जूती तथा अपनी बची खुची-रोटी और कपड़ों पर पलने वाली गुलाम न समझें। कुछ लोग कहते हैं कि स्त्रियाँ अपने आप पैरों की जूती बनी हुई हैं और स्वर्ग के लाभ से वे पुरुष की जूठी थाली में खाती हैं उनके नाम पर व्रत, उपवास करती हैं किन्तु यह भावना उनमें भरी किसने? पुरुष ही ने तो! स्त्री की हालत आज समाज में गिरी हुई है इसलिये उसे महान् बतलाकर--उसका पक्ष लेकर--जिस तरह से हो उस तरह से उसे उठाने की ज़रूरत है। जो पहले से मरी हुई हैं, दबी हुई हैं, सताई हुई हैं और जो समझती हैं कि स्त्री योनि में जन्म