सामग्री पर जाएँ

पृष्ठ:नारी समस्या.djvu/९०

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

नारी-समस्या वृत्तियों की आश्रय होने से स्त्रियों ने सर्वदा पुरुषों की अपेक्षा धर्ममार्ग का अधिक आश्रय लिया है । उदारता, परोपकार, पूजा, उपासना की परम्परा आज भी उन्हीं के द्वारा कायम है | किन्तु शिक्षा के अभाव से आज इस श्रद्धा का स्थान अन्ध विश्वास ने ले लिया है। सदियों की परवशता और शिक्षा की कमी ने जो अविवेकपूर्ण धार्मिक भावनायें पुरुषों में भर दीं उन्हें ही स्त्रियों ने भी धर्मसूत्र मानकर ग्रहण कर लिया है । उदाहरणार्थ भूतप्रेत पूजन और टोने-टोटकों का ले सकते हैं । इनके कारण छोटे छोटे बालकों में जो भय प्रविष्ट हो जाता है वह वृद्धावस्था तक निकाले नहीं निकलता । तंत्रयुग के ये ध्वंसावशेष अभी तक ग्रामीण समाज में अपना प्रभाव जमाये ही हुए हैं । इसी प्रकार मूर्तिपूजन है । जिस भावना से मूर्तिपूजन का प्रारम्भ हुआ था वह अत्यन्त उच्च थी किन्तु उसका अत्यन्त विकृत रूप देखने में आता है। सबेरे उठकर टहलने निकलिये तो स्त्री कोई पीपल का चक्कर काट रही है, कोई बट की प्रदक्षिणा कर रही है, और कोई चौराहे पर पत्र-पुष्प-जल बिखेर रही है । इस प्रकार हम केवल उपहासास्पद ही बनते हैं । इसी प्रकार व्रत-उपवास हैं । स्वास्थ्य, संयम और मनोबल के लिये इससे अच्छी दूसरी चीज नहीं । व्रत करना और उसे निभाना ही मनुष्यता ही कसौटी है। किन्तु व्रत कैसा करना चाहिये, इसी पर बुद्धि की परख है । काई भजन, पूजन, पठन, मनन का व्रत रखता है । काई दुखियों की सेवा-सहायता का नियम करता है तो काई शत्रु से बदला चुकाने की प्रतिज्ञा धारण करता है । भारतीय महिलायें जितने व्रत और उपवास करती हैं उतने शायद ही कोई अन्य करता हो किन्तु कहावत है कि 'सपूत हो तो एक ही बहुत है । इसी प्रकार व्रत यदि चुना हुआ हो तो एक पर्याप्त है । किन्तु आज व्रत का अर्थ भूखे रहना ही रह गया है। यह भी कुछ बुरा नहीं है । पक्ष या सप्ताह में एक उपवास करने से शरीर की शुद्धि होती है । पाचन शक्ति ठीक रहती है, मन भी शुद्ध रहता है । हिन्दुओं के पर्वो और व्रतों के साथ कोई न कोई आख्यान जुड़ा हुआ है । अनेकों बहनें नवरात्र का व्रत रखती हैं पर कितनी बहनें दुर्गा के आख्यान से परिचित हैं और तदनुकूल आचरण करने का निश्चयकर उपवास रखती हैं ? ऐसा ही होता तो चौबीसों घण्टे उन्हें पराश्रित न रहना पड़ता। संस्कारों का स्थान भी धार्मिक प्रथाओं में हैं। हिन्दू धर्म-शास्त्रों में संस्कारों को बड़ा महत्व दिया गया है । चार संस्कार तो बालक के जन्म के साथ ही समाप्त हो जाते है । बाल्यावस्था में और भी कई संस्कार हैं किन्तु कितनी मातायें उनसे परिचित हैं ? करना