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निबंध-रत्नावली

में स्त्री-जाति की पूजा करने के पवित्र भाव उत्पन्न हों, ताकि उसके लिये कुलीन स्त्रियाँ माता समान. भगिनी समान, पुत्री समान, देवी समान हो जायें । एक ही न ऐसा अद्भुत काम किया कि कुल जगन् की बहनों को इस पुरुष के दिल की डोर दे दी। इसी कारण उन देशों में मौनागेमी (स्त्री-व्रत ) का नियम चला। परंतु आजकल उस कानून की पूरे तौर पर पाबंदी नहीं होती। देखिए, स्वार्थ-परायणता के वश होकर थोड़े से तुच्छ भोगों की खातिर सदा के लिये कुंवारापन धारण करना क्या इस कानून को तोड़ना नहीं है। लोगों के दिल जरूर बिगड़ रहे हैं। ज्यों ज्यों सौभाग्यमय गृहस्थ-जीवन का सुख घटता जाता है त्यों त्यों मुल्की और इखलाकी बेचैनी बढ़ती जाती है। ऐसा मालूम होता है कि योरप की कन्याएँ भी दिल देने के भाव को बहुत कुछ भूल गई हैं। इसी से अलबेली भोली कुमारिकाएँ पार्लमेंट के झगड़ों में पड़ना चाहती हैं ; तलवार और बंदूक लटकाकर लड़ने मरने को तैयार हैं। इससे अधिक योरप के गृहस्थ-जीवन की अशांति का और क्या सबूत हो सकता है ?

सच्ची स्वतंत्रता

आर्यावर्त में कन्यादान प्राचीन काल से चला आता है। कन्यादान और पतिव्रत-धर्म दोनों एक ही फल-प्रानि का प्रतिपादन करते हैं। आजकल के कुछ, मनुष्य कन्यादान को गुलामी