सामग्री पर जाएँ

पृष्ठ:निबंध-रत्नावली.djvu/१२२

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।

८२

निबंध-रत्नावली

लीन हो गया; इस प्रेम में कदूरत लेश मात्र नहीं होती। विक्टर यगो ने ले-मिघ्राबल में मेरीयस और कौसट के ऐसे मिलाप का बड़ा ही अच्छा वर्णन किया है। चाँदनी रात है। मंद मंद पवन चल रही है। वृक्ष अजीब लीला में आसपास खड़े हैं। और यह कन्या और नौजवान कई दिन बाद मिले हैं। मेरीयस के लिये तो कुल संसार इस देवी का मंदिर-रूप हो रहा था। अपने हृदय की ज्योति को प्रज्वलित करके उस देवी की वह आरती करने आया है। कौसट घास पर बैठी है। कुछ मीठी मीठी प्रेम भरी बातचीत हो रही है। इतने में सरसराती हवा ने कौसट के सीन से चीर उठा दिया। जरा सी देर के लिये उस बर्फ की तरह सफेद और पवित्र छाती को नग्न कर दिया। मगर मेरीयस ने फौरन अपना मुँह दूसरी ओर हटा लिया। वह तो देवी-पूजा के लिये आया है; आँख ऊपर करके नहीं देख सकता। रोमिया और जूलियट नामक शेक्सपियर के प्रसिद्ध नाटक में जूलियट ने किस अंदाज से अपना दिल त्याग दिया और रोमियों के दिल की रानी हो गई ! वे किस्से-कहानियाँ जिनमें नौजवान शाहजादे अपना दिल पहले दे देते हैं अपवित्र मालूम होती हैं; और उनके लेखक प्रेम के स्वर्गीय नियम से अनभिज्ञ प्रतीत होते हैं। कुछ शक नहीं, कहीं कहीं पर वे इस नियम को दरसा देते हैं, परंतु सामान्य लेखों में पुरुष का दिल ही तड़पता दिखलाते हैं। कन्या अपना