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पृष्ठ:निबंध-रत्नावली.djvu/१२४

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निबंन्ध-रत्नावली

अपने दिल को हार चुकी। सीता के दिल के बलिदान का ही यह असर था कि मर्यादा-पुरुषोत्तम राम भगवान् वन वन में बारह वर्ष तक अपनी प्रियतमा के क्लेशनिवारणार्थ रोत फिरे योरप में कन्या जब अपना दिल ऊपर लिखे गए नियम से दान करती है तब वहाँ का गृहस्थ-जोवन आनंद और सुख से भर जाता है। जहाँ खुशामद और झूठे प्रेम से कन्या फिसला, थोड़ी ही देर के बाद गृहस्थाश्रम में दुख-दर्द और राग-द्वेष प्रकट हुए। प्रेम के कानून को तोड़कर जब योरप में उलटी गंगा बहने लगी तब वहाँ विवाह एक प्रकार की ठेकेदारी हो गया और समाज में कहीं कहीं यह खयाल पैदा हुआ कि विवाह करने से कुंवारा रहना ही अच्छा है। लोग कहते हैं कि योरप में कन्या-दान नहीं होता; परंतु विचार से देखा जाय तो संसार में कभी कहीं भी गृहस्थ का जीवन कन्या-दान के बिना सुफल नहीं हो सकता। योरप के गृहस्थों के दुखड़े तब तक कभी न जायँगे जब तक एक बार फिर प्रेम का कानून, जिसका शेक्सपियर ने अपने “रोमियो और जूलियट" में इस खूबी से दरसाया है, लोगों के अमल में न आवेगा। अतएव योरप और अन्य पश्चिमी देशों में कन्या-दान अवश्यमेव होता है। वहाँ कन्या पहले अपने आपका दान कर देती है। पीछे से गिरजे में जाकर माता, पिता या और कोई संबंधी फूलों से सजी हुई दूल्हन को दान करता है ।