पृष्ठ:निबंध-रत्नावली.djvu/१४

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

( १० ) की तलबी का यही कारण था। उस समय देश की दशा कुछ और थी और वह मुकदमा भी बड़ा भयंकर था। बहुत से निरपराध लोग भी उसकी लपेट में आ गए थे। प्रो० पूर्णसिंह के फंसने की शायद आशंका थी या नौकरी छूटने का डर था। यह देखकर प्रो० पूर्णसिंह के आत्मीय और मिलनेवाले, जिनमें सिक्व संप्रदाय के सज्जनों की संख्या अधिक थी, घबरा गए। उन्होंने प्रो० पूर्णसिंह पर जोर दिया कि वे मास्टर अमीर- चंद और स्वामी रामतीर्थ से अपना किसी प्रकार का भी संबंध स्वीकार न करें। मजबूर होकर प्रो० पूर्णसिंह को यही करना पड़ा। उन्होंने अदालत में ऐसा ही बयान दिया कि स्वामी रामतीर्थ या उनके शिष्यों से मेरा किसी प्रकार का भी संबंध नहीं है। इस प्रकार प्रो० पूर्णसिंह उस मुकदमे की आँच से तो बच गए पर उनके विचारों की हत्या हो गई। स्वामी रामतीर्थ के वेदांत सिद्धांत से उनका संबंध सदा के लिये छूट गया । प्रो. पूर्णसिंह को वैसा बयान देने के लिये मजबूर करनेवालों में एक सिक्ख साधु भी थे। उनकी संगति और शिक्षा ने प्रो० पूर्णसिंह की काया ही पलट दी। उन्होंने सब प्रकार से उस सिक्ख साधु को आत्मसमर्पण कर दिया, बिलकुल उसी के रंग में रंग गए।" इस घटना का उन पर इतना अधिक प्रभाव पड़ा कि उनका रूप-रंग बदल गया। यह तो पहले लिखा जा चुका है कि 'फारेस्ट इंस्टीट्यूट के प्रिंसपल से उनकी नहीं पटती थी। इस-