मजदूरी और प्रेम
सारे सुफेद हैं। और क्यों न सुफेद हों? सुफेद भेड़ों का मालिक जो ठहरा । परन्तु उसके कपोलों से लाली फूट रही है। बरफानी देशों में वह ।मानों विष्ण के समान क्षीरसागर में लेटा है। उसकी प्यारी स्त्री उसके पास रोटी पका रही है। उसकी दो जवान कन्याएँ उसके साथ जंगल जंगल भेड़ चराती घूमती हैं। अपने माता-पिता और भेड़ों को छोड़कर उन्होंने किसी और को नहीं देखा। मकान इनका बेमकान है; घर इनका बेघर है ; ये लोग बेनाम और बेपता हैं।
किसी घर कर में न घर कर बैठना इस दरे फानी में।
ठिकाना बेठिकाना और मकाँ बर ला-मकाँ रखना।
इस दिव्य परिवार को कुटी की जरूरत नहीं। जहाँ जाते हैं, एक घास की झोपड़ी बना लेते हैं। दिन को सूर्य और रात को तारागण इनके सखा हैं।
गड़रिए की कन्या पर्वत के शिखर के ऊपर खड़ी सूर्य का अस्त होना देख रही है। उसको सुनहली किरणें इसके लावण्यमय मुख पर पड़ रही हैं। यह सूर्य को देख रही है और वह इसको देख रहा है।
हुए थे आँखों के कल इशारे इधर हमारे उधर तुम्हारे ।
चले थे अश्कों के क्या फवारे इधर हमारे उधर तुम्हारे ।।
बोलता कोई भी नहीं। सूर्य उसकी युवावस्था की पवि- त्रता पर मुग्ध है और वह आश्चर्य के अवतार सूर्य की महिमा के तूफान में पड़ी नाच रही है।