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निबंध-रत्नावली

अपनी सारी विद्या को भूल गए, जिसके महत्त्व से एक ऊँट लादनेवाला चाकर ऐसा बलवान् हुआ कि कुल पृथ्वी उस ज्योतिष्मान् पुरुष के बल से उभड़ उठी; उसके आ जाने से तो और भला क्या बाकी रहा परंतु नहीं, भारतनिवासियों ने एक प्रकार की पुड़िया और गोली बनाई है जिसको खाते ही चंद्रमा चढ़ जाता है, ज्ञान हो जाता है। वह आपास तो फिर कुछ और दरकार नहीं होता। आ जगत्वालो! बड़ी भारी ईजाद हुई है। छोड़ दो अपनी पदार्थविद्या, जाने दो यह रेल, यह जहाज, ये नए नए उड़नखटोले, हवा में तैरनेवाले लोहे के जजीरे । प्रकृति की क्यों छानबीन कर रहे हो ? इसस क्या लाभ? हृषीकेश में वह अनमोल गोली बिकती हैं, और सिर्फ दो चपाती के दाम, जिस गोली के खाने से सारे जन्म कट जाते हैं, सब पाश टूट जात है; और जीवन-मुक्त हो सार संसार को अपनी उँगलियो पर नचा सकोगे, बिना नेत्र कं, बिना बुद्धि के, बिना विद्या के, बिना हृदय के, बुद्ध वाले निर्वारण, पतजलि वाली कैवल्य, वैशेषिकवाली विशेष, वेदांतवाली विदेह मुक्ति मिलती है। बेचनेवाले देखो वे जा रहे हैं। तीन-चार पुस्तकें हाथ में हैं और तीन-चार पुस्तके बगल में। आपको इन दो पुस्तकों के पढ़ने से ही ब्रह्म की प्राप्ति हो गई है. ज्ञान हो गया है। एक बेचारा पंजाबी साधु गाता था-

“श्रगे आप खुदा कहा ऊदेसां, हुण बन बैठे खुदा दे प्यो यारो"

जब कि दूसरे ने यह वाक्य उच्चारण किया था-