सामग्री पर जाएँ

पृष्ठ:निबंध-रत्नावली.djvu/२३६

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।

१९६

निबंध-रत्नावली


इस तरह से साधनों के अच्छे या बुरे होने पर मुझे कोई पांडित्य-पूर्ण व्याख्या नहीं करनी, मुझे तो अपने देशकी अपवित्रता के दूर करने और अपने भाई-बहनों को मनुष्य बनाने के साधनों को देखना है। जब हम मनुष्य बन जायँगे तब तो तलवार भी, ढाल भी, जप भी, तप भी, ब्रह्मचर्य भी, वैराग्य भी सब के सब हमारे हाथ के कंकणों की तरह शोभायमान होंगे, और गुणकारक होंगे। इस वास्ते बनी पहले साधारण मनुष्य, जीते-जागते मनुष्य, हँसते-खेलते मनुष्य, नहाए धोए मनुष्य, प्राकृतिक मनुष्य, जान वाले मनुष्य, पवित्र हृदय-पवित्र बुद्धिवाले मनुष्य, प्रेम भरे, रस भरे, दिल भरे, जान भरे, प्राण भरे मनुष्य । हल चलानेवाले, पसीना बहानेवाले, जान गंवानेवाले, सच्चे, कपट-रहित, दरिद्रता- रहित, प्रेम से भोगे हुए, अग्नि से सूखे हुए मनुष्य । आओ सब परिवार मिलकर कुछ यत्न करें।