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निबंध-रत्नावली

जाता है। आज कल किसी पार करनेवाले का नाम 'पारकर' होगा, परंतु एक ऋषि का उसी अर्थ का नाम पारस्कर है। व्याकरण को भाषा की उन्नति के अधीन माननेवाले लोग कहेंगे ये पुराने शब्द हैं, व्याकरणों के बनने के पहले भाषा के चालू सिक्कों में आ चुके थे, और पीछे वैयाकरणों ने अपनी बुद्धि के अनुसार जिन शब्दों को न बना पाया उन्हें निपातन करके अलग छाँट दिया। ठीक है, मेरा उनसे कोई झगड़ा नहीं। वे यह मानेंगे कि आज कल यदि दो जोडले भाई या सदा साथ रहनेवाले दो जनों के नाम कुश और लव हों तो उन्हें 'कुशलवौ' कहा जायगा; परंतु उन दिनों भाइयों को 'कुशीलचौ' नहीं कहेंगे, वह केवल वाल्मीकि के शिष्य और मैथिली के कुमारों पर रूढ़ है।

अच्छा, जरा देखिए तो संस्कृत में कुशीलव का क्या अर्थ है ? इसका अर्थ गाने-बजाने में कुशल, कीर्तिसचारक, नट वा चारण, गायक मिलता है। इन दोनों भाइयों के अर्थ में भी कुशीलव पद पाया जाता है। कुशीलवों की विद्या के चलाने- वाल वाल्मीकि मुनि का भी यह शब्द वाचक है। और इन अर्थो के वाचक कुशीला शब्द की व्युत्पत्ति कोशकार यह करते है कि “कुत्सितं शीलं अस्त्यर्थे व; कुशोलं वाति वा" कु= खोटा, शील = चरित्र, व= है, वा जो खोटे चरित्र को लिए फिरते हैं। इस बचपन की व्युत्पत्ति को मैं बेसमझी का टक्कर मारना कहता हूँ । यह उसी पंजाबी कहावत का नमूना है कि-