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पुरानी हिंदी

शौरसेनी और पैशाची (भूतभाषा)

इन प्राकृतों के भेदों में से हमें शौरसेनी और पैशाची का देश-निर्णय करना है। यद्यपि ये दोनों भाषाएँ मागधी और महाराष्ट्री से दब गई थी और इनका विवेचन व्याकरणों में गौण या अपवाद-रूप से ही किया गया है, तथापि हिंदी से इनका बड़ा संबंध है। शौरसेनी तो मथुरा ब्रजमंडल आदि की भाषा है। इसमें कोई बड़ा स्वतंत्र ग्रंथ नहीं मिलता, किंतु इसका वही क्षेत्र है जो ब्रजभाषा, खड़ी बोली और रेखते की प्रकृत भूमि है । पैशाची का दूसरा नाम भूतभाषा है। यह गुणाढ्य की अद्भुतार्था बृहत्कथा से अमर हो गई है । वह 'बड़कथा' अभी नहीं मिलती। दो कश्मीरी पंडितों ( क्षेमेंद्र और सोमदेव ) के किए उसके संस्कृत अनुवाद मिलते हैं ( बृहत्कथामंजरी और कथा- सरित्सागर)। कश्मीर का उत्तरी प्रांत पिशाच ( पिश-कच्चा मांस, अश्-खाना ) या पिशाश देश कहलाता था और कश्मीर ही में बृहत्कथा का अनुवाद मिलने से पैशाची वहाँ की भाषा मानी जाती थी। किंतु वास्तव में पैशाची या भूतभाषा का स्थान राजपूताना और मध्यभारत है। मार्कडेय ने प्राकृत

व्याकरण में बृहत्कथा को केकयपैशाची में गिना है। केकय


( संस्कृत की रचना परुष और प्राकृतरचना सुकुमार होती है, जितना पुरुष और स्त्रियों में अंतर होता है, उतना . इन दोनों में है।)