न होता तो कदाचित् इस काल में अयोध्या आदि पुरियों का इतना पता चलना भी कठिन था कि वे किस जगह पर थीं। यह मूर्तिपूजा ही का प्रभाव है कि बार बार ध्वंस होने पर भी हिंदुओं की पुरानी राजधानियों का नाम नहीं मिटा । अयोध्या के दाशरथी,मथुरा के केशवदेव,काशी के विश्वनाथ और उज्जैन के महाकालेश्वर आदि देवमूर्तियों की पूजा ही पुरियों के जीणेद्धार और फिर से बसने का कारण हैं।
टूटे फूटे मंदिर और खंडित मूर्तियों के ढेर के सिवाय अत्याचारियों के अत्याचार से इन पुरियों में शेष रह ही क्या गया है ? पर यदि सोचे समझे और विचार कर देखें,तो यह क्या कम है ? दृढ़प्रतिज्ञ धीर पुरुष को पितरों का अस्थिपुंज वा उनके चरण की धूल ही शक्तिसम्पन्न करने को बहुत है पर हृदयशून्य अकृतज्ञ पुरुष को कहीं भी कुछ नहीं ।
प्राचीन अयोध्या
सातों पुरियों की गणना में अयोध्या का नाम सबसे प्रथम है। क्यों न हो ? जो भारतवर्ष में आदिराज मनु की सबसे प्रथम राजधानी बनी; जहाँ वीरता,विद्या और सभ्यता का सबसे प्रथम विकास हुआ; जिसमें महात्मा इक्ष्वाकु,मांधाता; हरिश्चंद्र,दिलीप,अज,रघु,श्रीरामचंद्र हुए उस अयोध्या का नाम सबसे प्रथम क्यों न हो ? जिसके राजवंश के चरित्र के