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निबंध-रत्नावली

दुःख पहुँचाते हैं। कितने नराधमों को यह कहते देखा है कि ईश्वर कोई चीज नहीं है। यदि वह होता तो क्या हमें पापों का दंड न देता ? पर वे इस बात को नहीं समझते कि यह सब उस कृपालु की अपार दया का फल है जो दंड देने में विलंब कर रहा है।

कभी-कभी क्षमा से ऐसे भी कार्य हो जाया करते हैं जिनका प्रकारांतर से होना बहुत ही कठिन है। एक बार आगरे में महात्मा हरिदास जी यमुना से स्नान कर अपने स्थान पर आतं थे। मार्ग में शाही किला था जिस पर नवाब खानखाना बैठे हुए उनकी ओर घृणा से देखते थे। नवाब साहब को यह बात बहुत बुरी लगी कि महात्मा अपने शरीर को मुसलमानों के स्पर्श से बचाते आ रहे हैं। इसलिए इन्होंने उनके ऊपर घृणा से थूक दिया और वे इनकी ओर देखकर फिर यमुना की ओर चले गए। थोड़ी देर के बाद नवाब ने देखा कि फिर भी वे स्नान कर उसी तरह आते हैं। किले के नीचे आने की देर थी कि फिर इन्होंने उन पर थूका और वे देखकर उसी तरह चुपचाप लौट गए।

इस प्रकार वे स्नान कर आते रहे और वे उन पर थूकते रहे। जब वे ग्यारहवीं बार आए तो नवाब का भाव बदल गया। उन्होंने सोचा कि चिउँटी को भी पैर के नीचे दबाने से वह काटती है परंतु मनुष्य होकर भी इन्होंने मुझे कुछ भी न कहा ! क्या ये मुझे जबान से भी कुछ न कह सकते थे पर नहीं ये