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पृष्ठ:निबन्ध-नवनीत.djvu/१०८

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नहीं, पत से अच्छे अंगरेज भी श्रय यही पहिनते हैं। शौकीन लोग यह भी न पयाल करें कि देशी कपड़े में नफासत नहीं होती, नहीं, ढाके की मलमल, भागलपुरो टसर और मुर्शिदा बाद की गई थव भी अंगरेजी कपडे को अपने मागे तुच्छ समझती हैं। अब पेसा कोई तरह का कपडा नहीं है जो न बनता हो, और कुछ ही दिन लोग उत्साह दिखलावेतो न धन सके। प्रयागराज में केवल इसी की पफ कोठी मौजूद है। हमारे कानपुर के सौभाग्य से श्रीयुक्त लाला छोटेलाल-गयाप्रसाद महोदय ने भी देशी तिजारत कम्पनी खोली है। यदि अब भी इम नगर और जिले के लोग देशी कपडे को स्वय पहिनने ओर दूसरों को सलाह देने में फसर फरें तो देश का अमाग्य समझना चाहिये।

हम और हमारे सहयोगीगण सिखते २ हार गए कि देशोन्नति करो, पर यदावालों का सिद्धान्त है कि "अपना भला हो देश चाहे चूल्हे में जाय", यद्यपि जर देश चूल्हे में जायगा तो हम बच न रहेगे । पर समझना तो मुश्किल काम है 'ना। सो भाइयो, यह तो तुम्हारे ही मततव की बात है। आखिर कपडा पहिनोहोगे, एक बेर इमारे फहने से एक जोडा देशी कपडा पनवा डालो। यदि कुछ मुभीतादेख पडे तो मानना, दाम कुछ दूने न लगेंगे, चलेगा तिगुने से अधिक समया देशी लक्ष्मी और देशी शिल्प के उद्धार का फल संतमेंत । यदि' श्रय भी न चेतो तो तुमसे ज्यादा भकुला कौन नहीं २ हम सर मे अधिक, जो ऐसों को हितोपदेश करने में व्यर्थ जीवन खोते हैं !

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