पृष्ठ:निबन्ध-नवनीत.djvu/१२

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देश में आये। उनके आने के उपलक्ष्य में पण्डित प्रतापनारा यण ने "नाडला स्वागत" नाम की एक कविता लिखी। इस कविता का लोगों ने बडा आदर किया। इगलैंड तक मैं उसकी समालोचना हुई । इस कविता का आरम्भ' इस प्रकार है।

स्वागत श्रीयुत प्राडला, प्रेम प्रतिष्ठा पात्र । पळक पांग्डे करि रहे, तब हित देशीमात्र ॥ म्वागत श्रीयुत चार्ल्स ब्राडला परम पियारे। म्यागत स्वागत टिश-वंश विधु जग उजियारे। कालेकांकर में इनकी मगति से एक ऐसे सज्जन ने हिन्दी सीधी जिसने सद देहाती होकर भी, और जिसके बदौलत उमने हिन्दी सीखी उसकी जन्मभूमि देहात में थी, यह जान कर भी, देहातियों ही की सियलाई हुई हिन्दी में देहातियों को निन्दा करके अच्छा नाम पैदा किया है।

पुस्तक- रचना ।

इन्होंने अनेक पुस्तकें लिखी और अनुवादित की । जहां तक जाना गया है इनकी अनुवाद की हुई पुस्तके ये हैं। १ राजसिह, २ इन्दिरा, ३ राधारानी, ४ युगलांगुरीय, ५ चरिताएक-बगाल के ८ प्रसिद्ध पुरुषो के चरित, ६ पञ्चामत- पाच प्रसिद्ध देवताओं का अभिन्नत्व-निरूपण,७नीतिरतावली- घगला की नातिरतमाला का अनुवाद, ८ कथामाला-ईश्वर- चन्द्र विद्यासागर की पुस्तक का अनुनाद,९ हलङ्गीतशाकुन्तल, १० वर्णपरिचय ३ भाग-ईश्वरचन्द्र विद्यासागर की पुस्तक का अनुवाद, ११ सेनश-सेन-वशीय राजाओं का इतिहास, १२ सूर्य वगाल का भूगोल ।

I पहले चार यङ्किम पान के उपन्यास हैं। .