पृष्ठ:निबन्ध-नवनीत.djvu/१५४

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धरतीमाता।

श्राजका हमारे देश में गौमाता के गुण तथा उनकी रक्षा के उपाय एवं वजेनित लोभ की चर्चा चारो और सुनाई देती है। पद्यपि दुष्ट प्राति के लोग उसमें बाधा करने से नहीं चूकते, और बहुत से फटी रक्षक पन २ के भी भक का काम करते हैं, अथवा कमेर मजबूत बोधके तेन मर्न धन से इस विषय का उद्योग करनेवाले भी श्री स्वामी मालाराम, श्रीमान् स्वामी और पंडित जगतनारायण' के सिवा देखनही 'पडते । नमिधरी की लालच, आपस की वैमनस्य, सकार की साधेपरता यो बेपरवाईत्यादि कई अडचने बडी भारी है। पर लोगों के दिलों पर इस बात की यीज़ पड गया है तो निश्चय है कि कभी न कभी कुछ न कुछ हो ही रहेगा। पर खेद की विपर्य है कि हमारी धरती माता की और अमी हमारे रोजी प्रजो किसी की भी ध्यान नही है। हम अपने दिहाती भाइयों को देखते हैं तो सदो स्वच्छ घायु में रहते और परिश्रम करते एव अनेक वलनाशक दुर्व्यसनी से बचते हुए भी अधिकांश निर्यल ही पाते हैं। यह घुद्धिमानों का महानुभूत सिद्धान्त है कि उत्तम खेती मध्यम यान, निषिद्ध चीकरी भीख निदान', पर प्रांज कल कैपिजीवी ही लोग अधिक दरिद्री पाए जाते हैं। कितने शोक की बात है कि जिनके घर से हमारें नगरवासी भाइयों को अन्न-वस्त्र मिलता है उन्हीं को रोटी-लंगोटी के लाले पड़े रहते हैं।

हमारे बुद्धिमीच डार और हकीम जिन बातों का स्वास्थ्य रक्षा का मूल बताते हैं उन्हीं कामों को दिन रात करनेवाले यथोचित रीति से दृष्ट पुष्ट न हो, इसका कारण क्या है ?'