पृष्ठ:निबन्ध-नवनीत.djvu/१५६

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दवी हुई आग।

यदि किसी ठौर पर आग लगे, धधक उटे, तो हम अनेक उपाय से तुरन्त उसे बुझा सकते हैं । पर जो आग किसी वस्तु ने दयी हुई सुलग रही हो, मोर कोई उसे पतलानेवाला न हो तो उस अग्नि से अधिक भय है। आज कल परमेश्वर की दया से हमारे धर्मरूपी भवन के अग्निवत् ईसाई मत का प्रत्यक्ष प्रावल्य तो शांत होने के लगभग है, पर अभी ईसाइयों की एक कार्रवाई ऐसी फैली हुई है कि यदि उसका उपाय अभी से कमर घाधन किया जायगा तो एक दिन दी गई श्राग की भांति बह महा अनिष्ट करेंगी। अभी पचास वर्ष भी नहीं हुए कि हमारे माग से भारत में ईसाईपन को श्राग पूरे जोर शोर के साथ धधक रही थी। माकिर मधुसूदन दत्त, मिष्टोमोहन बनी नोलकठ इत्यादि विद्यावानों का स्मरण करके हमको याज नक खेद होता है कि हाय यह तोग यदि हमारे समाज से बहिष्कृत न हो जाते तो कितना उपकार न करते । पर हाय वह समय ही ऐमा दुस्समय था कि लोग पढ़ने लिखने के साथ हो पादरियों के जाज्वल्यमान अग्नि समूह में खादा हो जाते थे । परमेश्वर ने बड़ी दया की कि स्वामी दयानन्द, बाबू केशवचन्द्र मुशी कन्हैयालाल आ'द पुकपरलों को उत्पन्न कर दिया, जिनके वचनरुपी वरुणारत्रों से किस्तानी की भयानक अशि बहुत कुछ शात हो गई। अब अधिकत यह सभव नहीं है कि पढे लिये, प्रतिष्ठित, कुलीन में शामिल होके दुर्देव साहब के दस्तरखान में धर दिए माय । म एक वार अनेक विद्वानों के मता चुकूल लिस चुके हैं कि हजरत ईसा परु पूजनीय पुरुष थे, -