इस यात का विश्वास मसीही धर्म का मूल है कि ईसा मारे पापों के लिए वलि हो गये हैं। अर्थात् हमें पापजनित दुख से छुडाने के निमित्त अपने प्राण दे दिये । सच्चे ईसाई इस कारण से उनकी कृतज्ञता प्रकाशनार्थ श्रपना तन, मन, धन, जाति, कुटुम्ब, घरच प्राण तक निछावर कर देने में ईश्वर को प्रसन्न करना मानते हैं, और अपने, अधात दशा किए हुए, पापों के फलभोग से निश्चिन्त रहते हैं। यदि विचार के देखो नो प्रत्येक स्थान पर कोई २ ईश्वर के प्यारे होते हैं जो लोकोपकारार्थ बलि हो जाते हैं, और कृतज्ञ-समुदाय को योग्य है कि ऐसे उपकारियों का गुण मानके उनके लिए एवं उनके नाम पर जहा तक हो, कुछ प्रत्युपकार फरें। यदि प्रणपूर्वक उनकी किसी बात का कुछ लोग अनुसरण करें तो ससार का महोपकार सम्मान । खीष्टीय धर्मप्रचार के आरम में बहुत से लोग महा २ विपत्ति झेल चुके हैं, यहा तफ कि जीते जला दिए गए है। पर यह कहने से नहीं रुके कि ईसा ने हमारे लिए प्राण दिए हैं, हम उसका उपकार क्यों न मान।
उन्हीं की दृढता का फल है जो पृथ्वी के प्रत्येक भाग: ईसा का मत गौरव के साथ फेल रहा है। बडे २ पादशा घडे २ विद्वान वपतिसमा लिए पैठे हैं। परच हम यह कह सकते हैं, उन्दी के धर्मदाय का फल है, (प्रत्यक्ष या परपरा द्वारा) कि फई असभ्य देश सभ्य हो गए। हम तात्पर्य इस फई, शित समाज जेता हो गए, होय से यह है फि हमारे प्रिय पाठक भी सत्य सनातनधर्म छोड निज