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पृष्ठ:निबन्ध-नवनीत.djvu/१६४

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के अनुसार जिसका धन लिया है उससे विगा दिए उद्धार नहीं हाता । जिसका सब जीवन ही हमारे हेत लग गया है, उममे कैसे उमण होंगे, जब तक जन्म भर उसके लिए अपना सर्वसन लगाते रहें। ऐसा करने से ही भारत का गौरव है। नहीं तो स्मरण रहे कि पृथ्वी है भगवती का रूप, और भग वती चलिप्रदान से सतुष्ट होती है. हमारे ऐसा कहने का यह श्रथ नहीं है कि रिचार अनबोल बकरे की हत्या करने से भगवती प्रसन्न होती हैं। यों होता तो उनका नाम जगदम्यान होता, वरच जगद्भक्षिणो होता। सच यों है कि ईश्वर की तीन महाशक्ति है-श्रीशक्ति, भूशक्ति, लीलाशक्ति । इन तीनों के दो २ रूप हैं, दैवी श्रोर आसुरी, तिसमें भूशक्ति के आसुरी सम्प्रदायवाले कुछ लोग तो पराए मांस स तुष्ट होते हैं, पर थाशक्ति का दैवी अश उन दुश्चरित्रोंतथा-तद्गुण विशिष्ट जीवों के रक्कसावन से सतुष्ट होता है जो ससार के लिए अनिष्ट कारक हो । अधचा सत्यपुरुषों के उस रक्त मांस से सतुष्ट होती है जो जगहितैषिता की चिन्तानि में धीरे धीरे वा कमी २ एकबारगी स्वाहा होता है। सो भगवती भारतधरित्री ने हाल में उपर्युक्त तीन चलि ली हैं । निश्चय है कि यह विशुद्ध रक्त उनको साधारणतया न पच जायगा । अवश्यमेव कुछ अच्छा रग दिसाचेंगी। पर भारत-सन्तान को भी योग्य है कि इस वलि पर विश्वास ला कि इन पुरुषरतों ने हमारे लिए प्राण दिए है, हम भी यदि कृतज्ञता के पाप से पचा चाहें, और अपना एव अपने वश का भला चाहे तो मत करण से इनके महान् उपकार के कृत होके यथासामर्थ्य इनका अनुक- रण करें। जिसमें इनके नाम की महिमा हो, और कुत्र लोग और भी आत्मपलि के लिए प्रस्तुत हों। t