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पृष्ठ:निबन्ध-नवनीत.djvu/२५

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( २३ )

चहहु जु साचौ निज कल्यान ।

तो सब मिलि भारत-सन्तान ॥

जपो निरन्तर एक जबान ।

हिन्दी, हिन्दू, हिन्दुस्तान ॥१॥

तयहि सुधरिहै जन्म निदान ।

तबहि भलो करिहै भगवान ॥

जय रहिहै निशिदिन यह ध्यान।

हिन्दी, हिन्दू, हिन्दुस्तान ॥२॥

इससे इनका देशाभिमान भी सिद्ध होता है।

कविता के नमूने।

पडित प्रतापनारायण की कविता के कुछ नमूने देकर हम इस लेख को पूरा करना चाहते है-

ब्राटला-स्वागत।

नोन, तेल, लकडी, घासहु पर टिफस लगै जह। चना, चिरौंजी मोल मिलै अहं दीन प्रजा कह ॥ जहां रुपी, पाणिज्य, शिल्प, सेवा सय माहीं। पेशिन के हित कछू तत्व कहु कैसहु नाहीं ॥ १॥ कहिय कहा लगि नृपति दये हैं जह ऋन भारन । तह तिनकी धनकथा कौन जो गृही सधारन ॥ जे अनुशासन करन हेत इत पठये जाही। ते बहुधा बिन पाज प्रजा सो मिसत लजाही ॥२॥

खोकोक्तिशतक।

छोड़ि नागरी सुगुस आगरी उर्दू के रंग राते।।। देशी यस्तु विहाय विदेशिन सो सर्वख ठगाते ।