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अपने लेगों और चिट्ठियों में ये कभी कमी पैसवारे की अपनी ठेट देहाती योलो के वाक्य लिख दिया करते थे। उन में अपूर्व रस भरा रहता था। इस तरह की देहाती योली में इन्होंने कुछ कविता भी की है। ऐसी कविता का एक नमूना सुनिए । एक वृद्ध श्रादमी अपनी दशा का वर्णन करता है-
हाय बुढ़ापा तोरे मारे
पतो हम नकन्याया गयन ।
करत धरत कुछु बनत नाही
कहा जान औ कैस करन।
छिन भरि चटक छिन मा मद्धिम
जस युझात खन होय दिया।
तैसे निखरख देखि परत है -
हमरी अधिल केलाउन ॥१॥
श्रस कुछ उतरि जाति है जी ते
याजी येरिया वाजी बात ।
कैस्यो सुधिही नाही मावति
मूडुइ काहे न दे मारन ।
कहा वही कुछु निकरत कुछु है
जीभ रांड क्षा है यहु हालु ।
फोक याको पात न समुझे
चाहे पीसन दांय कहन ॥२॥
दादी नाक याकमा मिलि गै
बिन दातन मुहुँ मस पोपलान ।