पृष्ठ:निबन्ध-नवनीत.djvu/३९

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निबन्ध-नवनीत।
प्रथम परिच्छेद ।
साहित्यिक अंश ।।
प्राप।

ले भला यतलाइए तो आप क्या हैं ? आप कहते होंगे, वाह आप तो आपही हैं। यह कहा की आपदा आई ? यह भी कोई पूछने का ढंग है पूछा होता कि आप कौन हैं तो पतला देते कि हम आपके पत्र के पाठक हैं और आप ग्राहारण संपादक है, अथवा माप पडितजी है, आप राजाजी हैं, श्राप सेठजी हैं, प लालाजी हैं, आप बाबू साहव है, आप मिया साहब, आप निरे साहब है । भाप क्या है ? यह तो कोई प्रश्न की रीति ही नहीं है। वाचक महाशय यह हम भी जानते है कि आप आप ही है, और हम भी यही है, तथा इन सादवों की भी लदी धोती, चमकीली पोशाक, खुटिहई अगरखी, (मीरजई) सीधी माग, विलायती चाल, लम्पी दाढी और साहवानी हवस ही कदे देती है कि-