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पृष्ठ:निर्मला.djvu/११२

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श्राठवां परिच्छेद
 

दिल में क्या समझा होगा? क्या उसके मन में यह प्रश्न न उठा होगा कि पिता जी को देखते ही इसकी स्योरियाँ क्यों बदल गई? इसका कारण भी क्या उसकी समझ में आ गया होगा? बेचारा खाने आ रहा था,तब तक यह महाशय न जाने कहाँ से फट पड़े। इस रहस्य को उसे कैसे समझाऊँ? समझाना सम्भव भी है? हाय भगवान्! मैं किस विपत्ति में फंस गई?

सवेरे वह उठ कर घर के काम-धन्धे में लगी। सहसा नौ बजे भुङ्गी ने आकर कहा-मन्सा बाबू तो अपने कागद-पचर सव एक्के पर लाद रहे हैं।

निर्मला ने हकवका कर कहा-एके पर लाद रहे हैं? कहाँ जाते हैं ? भुङ्गी-मैंने पूछा तो बोले, अब स्कूल ही में रहूँगा।

मन्साराम प्रातःकाल उठ कर अपने स्कूल के हेडमास्टर साहव के पास गया था;और अपने रहने का प्रबन्ध कर आया था। हेडमास्टर साहब ने पहले तो कहा-यहाँ जगह नहीं है,तुमसे पहले के कितने ही लड़कों के प्रार्थना-पत्र पड़े हुए हैं। लेकिन जब मन्माराम ने कहा-मुझे जगह न मिलेगी,तो कदाचित् मेरा पढ़ना न हो सके और मैं इम्तहान में शरीक न हो सकूँ। हेडमास्टर साहब को हार माननी पड़ी। मन्साराम के प्रथम श्रेणी में पास होने की आशा थी। अध्यापकों को विश्वास था कि वह उस शाला की कोत्ति को उज्ज्वल करेगा। हेडमास्टर साहब ऐसे लड़के को कैसे छोड़ सकते थे। उन्होंने अपने दफ्तर का कमरा उसके लिए