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पृष्ठ:निर्मला.djvu/२९२

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छब्बीसवॉ परिच्छेद
 


उन्हें कई वार तुम्हारी ओर भाँकते देखा। उस वक्त मैं ने भी यही समझा कि शायद मुझे धोखा हो रहा हो। अव मालूम हुआ कि उस ताक-झाँक का क्या मतलब था। अगर मैं ने दुनिया ज्यादा देखी होती,तो तुम्हें अपने घर न आने देती। कम से कम उनकी तुम पर निगाह कभी न पड़ने देती;लेकिन यह क्या जानती थी कि पुरुषों के मुंह में कुछ और मन में कुछ और होता है। ईश्वर को जो मन्जूर था,वह हुआ। ऐसे सौभाग्य से मैं वैधव्य को बुरा नहीं समझती। दरिद्र प्राणी उस धनी से कहीं सुखी है,जिसे उसका धन सॉप बन कर काटने दौड़े। उपवास कर लेना आसान है, विपैला भोजन करना उससे कहीं मुश्किल।

इसी वक्त डॉक्टर सिन्हा के छोटे भाई और कृष्णा ने घर में प्रवेश किया। घर में कोहराम मच गया!