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पृष्ठ:निर्मला.djvu/४५

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निर्मला
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आप न आए, तो रखवा दिया गया। आपने कुछ भोजन किया था या नहीं?

मोटे०--हलवाई की दुकान से कुछ खा आया था।

भाल--अजी पूरी-मिठाई में वह आनन्द कहाँ, जो बाटी और दाल में है। दस-बारह आने खर्च हुए होंगे; और फिर भी पेट न भरा होगा। आप मेरे मेहमान हैं, जितने पैसे लगे हों ले लीजिएगा।

मोटे०--आप ही के हलवाई की दूकान पर खा पाया था, वह जो नुक्कड़ पर बैठता है।

भाल०--कितने पैसे देने पड़े?

मोटे०--आपके हिसाब में लिखा दिए।

भाल०--जितनी मिठाइयाँ ली हो, मुझे वता'दीजिए; नहीं पीछे से वईमानी करने लगेगा। एक ही ठग है।

मोटे०--कोई ढाई सेर मिठाई थी; और आध सेर रबड़ी!

बाबू साहब ने विस्फरित नेत्रों से पण्डित जी को देखा; मानो कोई अचम्भे की बात सुनी हो। तीन सेर तो कभी यहाँ महीने भर का टोटल भी न होता था; और यह महाशय एक ही बार कोई चार रुपये का माल उड़ा गए। अगर एक आध दिन और रह गए, तो बधिया ही बैठ जायगी। पेट है या शैतान की कब्र। तीन सेर! कुछ ठिकाना है। एक उद्विग्न दशा में दौड़े हुए अन्दर गए; और रंगीली से बोले--कुछ सुनती हो,यह महाशय कल तीन सेर मिठाई उड़ागए। तीन सेर पक्की तोल। रँगीलीबाई ने विस्मित होकर कहा--अजी नहीं, तीन सेर भला क्या खा जायगा। आदमी है या बैल?