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पृष्ठ:नैषध-चरित-चर्चा.djvu/७

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निवेदन

इस पुस्तक की पहली आवृत्ति निकले सोलह-सत्रह वर्ष हो गए। उसकी कापियाँ अप्राप्य हो जाने से यह दूसरी आवृत्ति प्रकाशित करनी पड़ी। इस बीच में नैषध-चरित के कर्ता महाकवि श्रीहर्ष के विषय में अनेक नई-नई बातें मालूम हुई हैं। उनमें से प्रायः सभी मुख्य-मुख्य बातों का समावेश इस आवृत्ति में कर दिया गया है। इस कारण पुस्तक के पूर्वार्द्ध में विशेष परिवर्तन करना पड़ा है। उत्तरार्द्ध में घटाने बढ़ाने की बहुत कम आवश्यकता हुई है। हाँ, भाषा का संशोधन थोड़ा-बहुत, सर्वत्र कर दिया गया है।

जुही, कानपुर। महावीरप्रसाद द्विवेदी
१६ एप्रिल,१९१६