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पृष्ठ:नैषध-चरित-चर्चा.djvu/९३

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नैषध-चरित-चर्चा

लेख बढ़ जाने के भय से उस विषय के श्लोक हम नहीं उद्धृत करते।

इस प्रकार बकते-झकते बहुत समय बीत गया । तब दमयंती को उसकी सखी ने समझाना और धैर्य देना आरंभ किया। कुछ देर तक इन दोनो की परस्पर बातें हुईं। अंत में सखी ने कहा—

स्फुटति हारमणौ मदनोष्मणा
हृदयमप्यनलङ्कृतमद्य ते;

भावार्थ—कामाग्नि से दग्ध होकर, हारस्थ मणि के फूट जाने से, देख, तेरा हृदय भी आज अनलंकृत (अलंकार- विहीन) हो गया।

दमयंती ने इसका और ही अर्थ किया । ऊपर श्लोक का पूर्वार्द्ध दिया गया है; नीचे उसी का उत्तरार्द्ध सुनिए । दमयंती ने कहा—

सखि, हतास्मि तदा यदि हृद्यपि
प्रियतमः स मम व्यवधापितः।

(सर्ग ४, श्लोक १०९)
 

भावार्थ—यदि मेरा हृदय भी अनलंकृत (नल-विहीन) हो गया, अर्थात् यदि मेरे हृदय से भी मेरा प्रियतम दूर चला गया, तो फिर मैं मरी!

यह कहकर दमयंती मूच्छित हो गई । 'अनलंकृत' श्लिष्ट पद है । उससे अलंकार-विहीनत्व और नल-विहीनस्व-सूचक