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अङ्क २]
[दृश्य १
न्याय

हत्या के दोष से मुक्त हो जाता है, उसी भाँति वह इस अव्यवस्थित दशा में दूसरे अपराध भी कर सकता है, और करता है। इस कारण उसको अपराधी न कहकर एक मरीज कहना चाहिए और उसके इलाज का प्रबंध भी करना चाहिए। मैं मानता हूँ इस तर्क का दुरुपयोग किया जा सकता है। परिस्थिति को देखकर ही इसका निर्णय करना चाहिए। लेकिन यह एक ऐसा भावना है, जिसमें आपको सन्देह का फल अपराधी को देना चाहिए। आपने सुना होगा मैंने अपराधी से प्रश्न किया था कि उसने उन अभागे चार मिनट में क्या सोचा था। उसने क्या जवाब दिया? "मुझे मिस्टर कोकसन का चेहरा याद आ रहा था"। महाशयगण, कोई आदमी बनावटी तौर से ऐसा जबाब नहीं दे सकता। इसपर सत्य की एक गम्भीर छाप लगी हुई है। जो औरत आज अपनी जान को भी जोखिम में डालकर यहाँ गवाही देने आई है, उसके साथ अपराधी का जो प्रेम है, चाहे उचित हो या न हो, वह भी आप से अब छिपा नहीं है। जिस दिन उसने यह काम किया था उस दिन वह कितना घबड़ाया हुआ था इसमें तो कोई सन्देह करना असम्भव है। इस प्रकार के दुर्बल

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