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अङ्क २]
[दृश्य १
न्याय

ज्यादा अच्छी तरह जानता हूँ। ऐसी सफ़ाई को बे सिर पैर के सिवा और क्या कहा जाय? क़सूर को इक़बाल कर लेना ही दूसरा रास्ता था। महोदयगण! अगर अपराध स्वीकार कर लिया गया होता, तो मेरे मित्र को हुज़ूर की सीधी सादी दया की प्रार्थना करने के सिवा और कोई उपाय न था। परन्तु उन्होंने ऐसा न करके इस मामले की कतरब्योंत की है, और यह सफ़ाई गढ़ डाली है जिससे उन्हें त्रिया-चरित्र की बानगी दिखाने एक स्त्री को गवाह के कटघरे में खड़ा करने और इसे एक करुणप्रेम के रंग में रंगने का अवसर दे दिया है। मैं अपने मित्र की इस सूझ बूझ की तारीफ़ करता हूँ। इससे उन्होंने किसी हद तक क़ानून से बचने की कोशिश की है। शायद और किसी तरह वह प्रेरणा और चिन्ता के सारे क़िस्से को अदालत के सामने इस प्रकार न खड़ा कर सकते। लेकिन महोदयगण! एक बार जब आपको असली बात मालूम हो गई, तब आप सारी बात जान गए।

[सहृदय उपेक्षा के साथ]

अच्छा, इस पागलपन की दलील को देखिए। पागलपन के सिवा हम इसे कुछ नहीं कह सकते। आपने उस

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