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अङ्क ३]
[दृश्य २
न्याय

दया है। लेकिन मैं कोई वादा नहीं कर सकता। एक भले आदमी को धोखा नहीं देना चाहता।

[कोठरी की ओर देखकर]

अगर चार घंटे डट कर और मिलते तो मैं इसे पूरा कर लेता।

दारोग़ा

तो उससे होता क्या? फिर पकड़ लिए जाते। यहाँ लाए जाते और सजा मिलती। पाँच हफ़्ते की सख़्त मिहनत करने पर भी कोठरी में बन्द रहना पड़ता। तुम्हारी खिड़की पर एक नई गराद लगा दी जाती। सोचो मोनी क्या यह काम इस लायक है ?

मोनी

[कुछ डरावने भाव से]

हाँ, है।

दारोग़ा

[हाथों से भौहों को खुजाते हुए]

अच्छा, दो दिन कोठरी और सिर्फ रोटी और पानी।

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