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उपकरण नहीं बनेंगे, कपड़ा नहीं बुना जायगा, जिससे मेरे कुटुम्बी भूखे मर जायेंगे। इसलिये अच्छा यही है कि तुम किसी और वृक्ष का आश्रय लो, मैं इस वृक्ष की शाखायें काटने को विवश हूँ।"

देव ने कहा—"मन्थरक! मैं तुम्हारे उत्तर से प्रसन्न हूँ। तुम कोई भी एक वर माँग लो, मैं उसे पूरा करूँगा, केवल इस वृक्ष को मत काटो"

मन्थरक बोला—"यदि यही बात है तो मुझे कुछ देर का अवकाश दो। मैं अभी घर जाकर अपनी पत्नी से और मित्र से सलाह करके तुम से वर मांगूँगा।"

देव ने कहा—"मैं तुम्हारी प्रतीक्षा करूँगा।"

गाँव में पहुँचने के बाद मन्थरक की भेंट अपने एक मित्र नाई से हो गई। उसने उससे पूछा—"मित्र! एक देव मुझे वरदान दे रहा है, मैं तुझ से पूछने आया हूँ कि कौन सा वरदान माँगा जाए।"

नाई ने कहा—"यदि ऐसा ही है तो राज्य माँग ले। मैं तेरा मन्त्री बन जाऊँगा, हम सुख से रहेंगे।"

तब, मन्थरक ने अपनी पत्नी से सलाह लेने के बाद वरदान का निश्चय करने की बात नाई से कही। नाई ने स्त्रियों के साथ ऐसी मन्त्रणा करना नीति-विरुद्ध बतलाया। उसने सम्मति दी कि "स्त्रियां प्रायः स्वार्थपरायणा होती हैं। अपने सुख-साधन के अतिरिक्त उन्हें कुछ भी सूझ नहीं सकता। अपने पुत्र को भी जब वह प्यार करती है, तो भविष्य में उसके द्वारा सुख की कामनाओं से ही करती है।"