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दूँगा। कोई सा एक वर माँग ले।"

वानरराज ने पूछा—"मगरराज! तुम्हारी भक्षण-शक्ति कितनी है?"

मगरराज—"जल में मैं सैंकड़ों, सहस्रों पशु या मनुष्यों को खा सकता हूँ; भूमि पर एक गीदड़ भी नहीं।"

वानरराज—एक राजा से मेरा वैर है। यदि तुम यह कंठहार मुझे दे दो तो मैं उसके सारे परिवार को तालाब में लाकर तुम्हारा भोजन बना सकता हूँ।"

मगरराज ने कंठहार दे दिया। वानरराज कंठहार पहिनकर राजा के महल में चला गया। उस कंठहार की चमक-दमक से सारा राजमहल जगमगा उठा। राजा ने जब वह कंठहार देखा तो पूछा—“"वानरराज! यह कंठहार तुम्हें कहाँ मिला?"

वानरराज—"राजन्! यहाँ से दूर वन में एक तालाब है। वहाँ रविवार के दिन सुबह के समय जो गोता लगायगा उसे वह कंठहार मिल जायगा।"

राजा ने इच्छा प्रगट की कि वह भी समस्त परिवार तथा दरबारियों समेत उस तालाब में जाकर स्नान करेगा, जिस से सब को एक-एक कंठहार की प्राप्ति हो जायगी।"

निश्चित दिन राजा समेत सभी लोग वानरराज के साथ तालाब पर पहुँच गये। किसी को यह न सूझा कि ऐसा कभी संभव नहीं हो सकता। तृष्णा सबको अन्धा बना देती है। सैंकड़ों वाला हज़ारों चाहता है; हज़ारों वाला लाखों की तृष्णा