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[पञ्चतन्त्र
करटक—"यदि इनमें से किसी को भी यह ज्ञान हो गया कि तू फूट कराना चाहता है तो तेरा कल्याण नहीं।"
दमनक—"मैं इतना कच्चा खिलाड़ी नहीं हूँ। सब दाव-पेंच जानता हूँ।"
करटक—"मुझे तो फिर भी भय लगता है। संजीवक बुद्धिमान है, वह ऐसा नहीं होने देगा।"
दमनक—"भाई! मेरा बुद्धि-कौशल सब करा देगा। बुद्धि के बल से असंभव भी संभव हो जाता है। जो काम शस्त्रास्त्र से नहीं हो पाता, वह बुद्धि से हो जाता है : जैसे सोने की माला से काकपत्नी ने काले सांप का वध किया था।
करटक ने पूछा—"वह कैसे?"
दमनक ने तब 'साँप और कौवे की कहानी' सुनाई।