पृष्ठ:पंचतन्त्र.pdf/३८

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ प्रमाणित है।
मित्रभेद]
[३३
 


केकड़े ने यह सुनकर पूछा—"मामा! इस वैराग्य का कारण क्या है?"

बगुला—"मित्र! बात यह है कि मैंने इस तालाब में जन्म लिया, बचपन से यहीं रहा हूँ और यहीं मेरी उम्र गुज़री है। इस तालाब और तालाब-वासियों से मेरा प्रेम है। किन्तु मैंने सुना है कि अब बड़ा भारी अकाल पड़ने वाला है। १२ वर्षों तक वृष्टि नहीं होगी।"

केकड़ा—"किससे सुना है?"

बगुला—"एक ज्योतिषी से सुना है। यह शनिश्चर जब शकटाकार रोहिणी तारकमण्डल को खंडित करके शुक्र के साथ एक राशि में जायगा, तब १२ वर्ष तक वर्षा नहीं होगी। पृथ्वी पर पाप फैल जायगा। माता-पिता अपनी सन्तान का भक्षण करने लगेंगे। इस तालाब में पहले ही पानी कम है। यह बहुत जल्दी सूख जायगा। इसके सूखने पर मेरे सब बचपन के साथी, जिनके बीच मैं इतना बड़ा हुआ हूँ, मर जायंगे। उनके वियोग-दुःख की कल्पना से ही मैं इतना रो रहा हूँ। और इसीलिए मैंने अनशन किया है। दूसरे जलाशयों के सभी जलचर अपने छोटे-छोटे तालाब छोड़कर बड़ी-बड़ी झीलों में चले जा रहे हैं। बड़े-बड़े जलचर तो स्वयं ही चले जाते हैं, छोटों के लिए ही कठिनाई है। दुर्भाग्य से इस जलाशय के जलचर बिल्कुल निश्चिन्त बैठे हैं—मानो, कुछ होने वाला ही नहीं है। उनके लिए ही मैं रो रहा हूँ; उनका वंशनाश हो जायगा।"