केकड़े की बात सुनकर बगुले ने सोचा, 'मछलियाँ खाते-खाते मेरा मन भी अब ऊब गया है। केकड़े का मांस चटनी का काम देगा। आज इसका ही आहार करूँगा।'
यह सोचकर उसने केकड़े को गर्दन पर बिठा लिया और वध-स्थान की ओर ले चला।
केकड़े ने दूर से ही जब एक शिला पर मछलियों की हड्डियों का पहाड़ सा लगा देखा तो वह समझ गया कि यह बगुला किस अभिप्राय से मछलियों को यहाँ लाता था। फिर भी वह असली बात को छिपाकर प्रगट में बोला—"मामा! वह जलाशय अब कितनी दूर रह गया है? मेरे भार से तुम इतना थक गये होगे, इसीलिए पूछ रहा हूँ।"
बगुले ने सोचा, अब इसे सच्ची बात कह देने में भी कोई हानि नहीं है; इसलिए वह बोला—"केकड़े साहब! दूसरे जलाशय की बात अब भूल जाओ। यह तो मेरी प्राणयात्रा चल रही थी। अब तेरा भी काल आ गया है। अन्तिम समय में देवता का स्मरण कर ले। इसी शिला पर पटक कर तुझे भी मार डालूंगा और खा जाऊँगा।"
बगुला अभी यह बात कह ही रहा था कि केकड़े ने अपने तीखे दांत बगुला की नरम, मुलायम गरदन पर गाड़ दिये। बगुला वहीं मर गया। उसकी गरदन कट गई।
केकड़ा मृत-बगुले की गरदन लेकर धीरे-धीरे अपने पुराने जलाशय पर ही आ गया। उसे देखकर उसके भाई-बन्दों ने उसे