१२४ पत्यर-युग के दो बुत और उमका मूल उद्गम अन्त त्राव पेशी मे पैदा होता है। इन नानो को उत्पन्न करने वाली अनेक पेशिया है। यदि एक गथि का काम मुम्न होता है तो दूसरी पर भी उसका प्रभाव पड़ता है और उसमे देह-वभाव बदल जाता है। लोग इस कुदरती वैज्ञानिक गरीर-निर्माण की बारीकी को नही जानते, प्रौर योथे नीति के उपदेशो द्वारा मब किसी को मयम का उपदेश देकर और उनके स्वभाव और शरीर-निर्माण के प्रतिकूल उन्हे वलात् सयम के लिए विवश करते है, जिमका घातक प्रभाव गरीर और मन पर पडता है। मन शरीर से भिन्न नहीं है । वह शरीर ही के गुण-धर्म का परिणाम है । आत्मा को भी आध्यात्मिक लोग शरीर से पृथक् सत्ता मानते हैं। वे यह भी कहते हैं कि वही शरीर और मन पर नियन्त्रण करने की शक्ति रखती है। परन्तु यह कोरा सिद्धान्त ही है, व्यवहार मे उसकी कोई उप- योगिता नही है, न विज्ञान उसके अस्तित्व से लाभ उठा सकता है, न उसके न होने से विज्ञान का काम अटकता है । किसी शारीरिक काम की सवल इच्छा को मसोस डालना वास्तव मे आत्मा का नही, मन का काम है । वह इच्छा जितनी दुर्दम्य होगी, मन को दमन करने से उतना ही क्षय होगा, क्योकि मन की गति ही इन्द्रियो की इच्छायो की पूर्ति की ओर है। मन की शक्ति प्रानुवशिक होती है। पूर्व के विचार-सस्कारो से वह प्रभावित रहती है, और पूर्वानुभव का उसपर प्रभुत्व रहता है। ऐसी दशा में किसी भी इन्द्रिय की विपयेच्छा यदि प्रवल होती है तो अन्य इच्छाए स्मृति से प्रोझल हो जाती है, और सारी जीवनी-शक्ति उसी इच्छा पर केन्द्रित रहती है। अब शरीर के इस नैसर्गिक उद्वेग को, जो पराकाष्ठा को पहुच चुका है, दबाना निश्चय ही शरीर की जीवनी-शक्ति के विपरीत एक भयानक धक्का देना है, जिससे वह शक्ति छिन्न-भिन्न हो जाती है। प्रोफ, कितने गहन और भयानक ये तथ्य हैं, जिन्हे सव लोग नहीं
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